शनिवार, 18 अप्रैल 2009

नहीं चाहिए वृद्ध आश्रम...


हमारे समाज और देश में बूढों की हालत देख कर जी भर आता है.पिछले कुछ वर्षों में देश में जिस तेजी से वृद्ध आश्रम बढे है...वो सारी कहानी ख़ुद ही बयान कर देते है..!भारत जैसे देश में जहाँ माता पिता को देव तुल्य समझा जाता है...वहां इस तरह की बेरुखी सतब्ध करती है..!क्या वाकई में हम इतने आगे बढ़ गए है की आज ये बूढे हमारे लिए बोझ बन गए है?जिस घर को इन्होने अपने खून पसीने से सींचा ..उसी घर के एक बाहरी कोने में इन्हे पड़े देख कर दिल पर चोट सी लगती है..?पूछने पर आज की संतान कहती है इन्होने नया क्या किया?सभी माँ बाप अपने बच्चों के लिए ये सब करते है...!लेकिन मैं उनसे पूछना चाहता हूँ की क्या संतान भी ऐसा ही कर पाती है...?आख़िर माँ बाप भी तो उम्मीद करते है की उनकी .संतान उनके बुढापे की लाठी बने...!पर ऐसा कहाँ होता है...!बूढे अपनी मूक नज़रों से ये सब होते हुए भी क्या चाहते है..सिर्फ़ इज्ज़त के साथ दो वक्त की रोटी ?क्या ये भी उन्हें नहीं मिलनी चाहिए?अगर नहीं तो फ़िर क्यूँ हम दान के नाम पर इधर उधर चंदा देते .फिरते है ?ताकि सोसायटी में हमारी इज्ज़त बनी रहे...?मैं ऐसी मानसिकता वाली सभी संतानों से कहना चाहता हूँ की जिन्होंने आपके सुख के लिए अपना पूरा जीवन दे दिया..आप भी उन्हें कुछ समय .दे...!देश में वृधाश्रम की नहीं स्कूल की जरुरत है जो संतानों को सही संस्कार दे सके.....

10 टिप्पणियाँ:

jamos jhalla 18 अप्रैल 2009 को 7:11 pm बजे  

bahut achaa samsaamaayik dard ko ukeraa hai .puraane ko saath lekar naye kaa nirmaan chir sthaayee ho saktaa hai.saadhuvaad.
jhallevichar.blogspot.com

Rajesh Tanwar 19 अप्रैल 2009 को 5:40 pm बजे  

बूढे लोगों को हमदर्दी नहीं...इज़त और सम्मान चाहिए...जो उनको नहीं दिया जा रहा...

hempandey 19 अप्रैल 2009 को 6:16 pm बजे  

जिन्होंने आपके सुख के लिए अपना पूरा जीवन दे दिया..आप भी उन्हें कुछ समय .दे

-सही कहा.

alka mishra 19 अप्रैल 2009 को 7:49 pm बजे  

प्रिय बन्धु
खुशामदीद
स्वागतम
हमारी बिरादरी में शामिल होने पर बधाई
मेरी सबसे बड़ी चिंता ये है कि आज हमारे समाज का शैक्षिक पतन उरूज पर है पढना तो जैसे लोग भूल चुके हैं और जब तक आप पढेंगे नहीं, आप अच्छा लिख भी नहीं पाएंगे अतः सिर्फ एक निवेदन --अगर आप एक घंटा ब्लॉग पर लिखाई करिए तो दो घंटे ब्लागों की पढाई भी करिए .शुभकामनाये
अंधियारा गहन जरूरत है
घर-घर में दीप जलाने की
जय हिंद

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर 20 अप्रैल 2009 को 10:23 am बजे  

ham to us dor me jee rahe hain jnha log bujurg mata-pita ka hath pakad kar kahni lejane kee bajaye kutte[ dog] ko park me ghumate hain. narayan narayan

परमजीत सिहँ बाली 20 अप्रैल 2009 को 2:48 pm बजे  

बहुत सही बात लिखी है।बधाई।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) 20 अप्रैल 2009 को 2:56 pm बजे  

इस दर्द की कोई davaa नहीं.....क्योंकि अब संतान में वो बात नहीं....अब सिर्फ स्वार्थ है हम सबके आस-पास....जिसमे माँ-बाप के लिए कोई जगह नहीं ......!!

रचना गौड़ ’भारती’ 20 अप्रैल 2009 को 3:16 pm बजे  

्बहुत सुन्दर लिखा है। मेरे ब्लोग पर आ्पका स्वागत है।

Urmi 20 अप्रैल 2009 को 3:21 pm बजे  

पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने !

dhananjay mandal 20 अप्रैल 2009 को 5:38 pm बजे  

बुढ़े बरगद की माटी को सिस धरने वाली हमारी संसकॄती का हास दरशाते.........."वॄद्ध आश्रम"!साथ गॄहस्त आश्रम का अवमूल्यन......."वॄद्धआश्रम"......आपने ठीक कहा.